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कविता

आग

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी


कहीं बाहर नहीं होती वह
हर चीज में होती है आग

आत्मा की तरह अदृश्य और जाग्रत
बिरही की तरह बेचैन और आतुर

किसी भी चीज को उठा लो कहीं से
ले जाओ उसे आग के पास
स्पर्श होते ही
वह बन जाएगी आग।

 


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